“लड़का यादव है”
एक लड़का था, एक लड़की थी, इंस्टाग्राम पर मिले, लड़की का ब्रेकअप हुए 2 साल हो चुका था, लड़के का ब्रेकअप अभी-अभी ही हुआ था. लड़की ने लिखा- "Hiii, बहुत खूबसूरत लिखते हो तुम"
"अच्छा तो ऊपर वाला लिखता है, जैसे तुम्हें लिख दिया है मेरे लिए, हाहाहा".
मजाक अब दोस्ती बनने को था.. प्रेम न बने इसलिए, दोनों ने तय किया कि दोस्त बनेंगे, अच्छे दोस्त, सिर्फ दोस्त ही... ऐसे समझो दोनों डर रहे हों एकदूसरे से प्रेम हो जाने से.. दोनों ने तय किया कि एनी फ्रैंक की तरह एक दूसरे को अपना सुख-दुख लिखेंगे, एनी ने डायरी में लिखा था, हम एक दूसरे के इनबॉक्स में लिखेंगे.
एनी फ्रैंक हिटलर के समय के जर्मनी में, एक यहूदी बच्ची थी, उस समय यहूदियों पर हुए जुल्म किसी से छुपे हुए नहीं थे. एनी फ्रैंक जर्मनी के ही एक अंडरग्राउंड मकान में अपने परिवार के साथ छिपकर रहती थी. सो उसका कोई दोस्त न था, न कोई क्लासमेट. महीनों से परिवार के साथ घर में कैद थी, एनी के जन्मदिन पर उसके पापा ने एक डायरी दी. एनी ने सोचा जब कोई दोस्त ही नहीं है, तो सुख दुख सुनाने के लिए क्यों न इस डायरी को ही दोस्त बना लूं. तय हुआ कि यही किया जाएगा. डायरी का नाम रक्खा - "डियर किट्टी". अब से एनी डायरी में हर चीज ऐसे लिखती, जैसे कि अपने दोस्त से बातें कर रही हो. कहती 'डियर किट्टी आज दरवाजे में उंगली आ गई... लिखती 'डियर किट्टी! आज पहली बार मेरे पीरियड्स आए हैं, लिखती कि आज बहुत थकान है, लिखती कि आज हिटलर के सिपाही गलियों से गुजरे तो दम ही निकल गई.
एनी जो भी लिखती पूरा सच्चा सच्चा...लिखती कि "पता है डियर किट्टी............."
हिटलर के दिन बीत गए, मित्र सेनाओं ने जर्मनी पर कब्जा कर लिया. लोगों को दोबारा से आजाद करा लिया गया. यहूदी फिर से आजाद हुए.. लेकिन एनी ये दिन न देख सकी, 15-16 साल की उमर में ही एनी इस दुनिया से दूर कहीं चली गई, उसकी डायरी उसके पिता को मिली, जिसे एक स्थानीय प्रकाशक की मदद से उन्होंने छपवा दिया, पूरी दुनिया में वो किताब प्रसिद्ध हुई, किताब का नाम हुआ "द डायरी ऑफ अ यंग गर्ल"...
दुनिया की सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली किताबों में से एक.
एनी फ्रैंक की उस किताब को अमन ने तभी पढ़ा ही था. अंजली से पूछा तुमने एनी फ्रैंक की "द डायरी ऑफ अ यंग गर्ल" पढ़ी है? जबाव आया "हां बचपन में, मेरे सिलेबस में थी तभी पढ़ा था."
एनी फ्रैंक की तर्ज पर ही दोनों ने तय किया कि हम दोनों दोस्त नहीं, एक दूसरे की डायरी बनेंगे, दोस्त तो बहुत हैं..
डायरी कहां लिख पाते.. इसलिए डायरी बन जाते हैं एक दूसरे की..हम दोनों तो बोलते भी हैं! तुम मुझे लिखना, मैं तुम्हें लिखूंगी, यहीं इंस्टाग्राम पर, एक दूसरे के इनबॉक्स में, *"मरने तक एक दूसरे को अपना सुख दुख लिखेंगे".
"एनी को तो उसकी डायरी कोई जबाव भी न देती थी. सोचो हम तो एक दूसरे की स्थिति-परिस्थितियों पर कुछ बोल भी लिया करेंगे, सोचो "बोलने वाली डायरी"...."
"कैसा आईडिया है न, ह्म्म्म...?"
"वाह! कमाल का, मजेदार, मैं तो ब्रेकअप के बाद से एकदम अकेली ही पड़ गई हूं" अंजली ने लिखकर भेजा.
"और कभी एक दूसरे का फोन न. भी नहीं लेंगे, न फोन पर बात करेंगे, न व्हाट्सएप पर. जो भी करेंगे यहीं इंस्टाग्राम पर. ताकि सारा लिखा हुआ एक जगह पर इकट्ठा रहे, व्हाट्सएप पर अक्सर मिट जाता है, डिलीट हो जाता है, इंस्टाग्राम ही सही है, जो भी अच्छा बुरा, खूबसूरत-डरावना, लिखेंगे, यहीं लिखेंगे. ताकि जिंदगी भर के लिए सहेजा जा सके, जिंदगी में आगे भी दोबारा से पढ़ा जा सके कि किस-किस दौर से जीकर हम आए हैं.
अपने बच्चों को अपनी "बोलने वाली डायरी" के बारे में बताएंगे तो कितना मजा आएगा, हैं...न!""
दोनों में दोस्ती हुई, खूब बातें हुईं, अंजली बताती कि कैसे उससे ट्यूशन पढ़ने आने वाले एक बच्चे को उससे प्यार हो गया है. अभी बच्चा है यार वो, कोई 14 साल का, बताओ मुझसे प्यार कर लिया... हहहहहह अपनी मैडम से..
अमन बताता कि 'चौथे ब्रेकअप के बाद, आज भी उसे पहली प्रेमिका की याद आ जाती है, इस बात के लिए नहीं कि उसके पास वापस जाना है, इसलिए कि उसे धोखा क्यों दिया, गिल्ट होती है यार, कुछ भी हो ऐसे भागना नहीं था मुझे.."
अंजली 'बसंत' के दिनों पर कविता लिखती, कहती बताओ कैसी लिखी है...हर 'कैसी लिखी है" के सवाल में एक अदब तारीफ की इच्छा होती. अंजली की भी ऐसी ही इच्छा होती थी कि अमन छोटी सी ही सही, कभी तो तारीफ करे. लेकिन अमन कहां प्रकृति का मर्म समझता था, सो लिख देता
"बसंत...!! हहहह, कितना क्लीशे है बसंत, बहुत ही ओवररेटेड"
" तुमने अक्टूबर देखी है? यार कितनी अच्छी मूवी है न अक्टूबर...
"अक्टूबर..! हा हा हा..बहुत ही घटिया.. एकदम घटिया मूवी.."
अंजली लिखती " पता है अमन आज मॉल में एक लड़का दिखा, कितना सुंदर था सच में, मन कर रहा था कि Hug कर लूं, मेरा बॉयफ्रेंड क्यों नहीं है यार.. कोई, मुझे भी जाना है मॉल, मुझे भी आइनें में अपने बाल संभालने हैं... .."
" अच्छा! तो इनको कोई लड़का मिल गया.. पता है बड़े बड़े बूब्स वाली एक लड़की तो मुझे भी मिली आज... हा हा हा हा"
"काफी मिसोजिनिस्ट हो आप.. हम्म्म्म "
ये चौथा महीना था दोनों का. अंजली लिखती-
"पता है! आज मैंने एक लड़के से किस किया. किस ही क्यों... पूरा स्मूच ही था यार, मजा आ गया एकदम.. हम एक दूसरे से प्यार भी करने लगे हैं"
"अरे वाओ, ahmmmm ahmmm, कौन है वो बेचारा!!"
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दोनों कुछ न कुछ एक दूसरे के लिए लिखते, एक दूसरे के लिखे हुए पर रियेक्ट करते, हर टॉपिक पर लिखते, हिन्दू-मुसलमान पर लिखते, लिखते कि पापा को समझाना मुश्किल होता जा रहा है, टीवी इस देश की पीढ़ियों की बर्बाद कर रही हैं'
अंजली लिखती "कैसे उसका प्रेमी जब भी पहले की प्रेमिका की बात करता है तो जलन होती है, मुझे नहीं सुनना उसकी एक्स के बारे में.. मैं चाहती तो उसके अतीत के सारे पन्नों में खुद का नाम लिख लेती... ऐसा क्यों नहीं हो सकता यार!... हम सब प्रेम करने वाले, बिछुड़ी हुई प्रेम कहानियों से ही क्यों आते हैं, एक दूसरे से सीधे आकर क्यों नहीं मिलते"
अंजली हर रोज अपने प्रेमी के बारे में बताती, अमन अपनी पूर्व की अलग-अलग प्रेमिकाओं के बारे में बताता..
"तुम वोमेनाइजर हो अमन, जी करता है सारी लड़कियों को बता दूं कितने हरामी हो तुम, अब जिस लड़की के साथ हो उसी के साथ टिको न यार!"
एक दूसरे को लिखते-सुनते-सुनाते पांचवा महीना भी बीत गया.. रात के ढाई बज रहे थे..अंजली का मैसेज आया..
"अमन यार, एक ब्लंडर हो गया है..भैया को उस लड़के के बारे में पता चल गया है, लड़का यादव है और हम राजपूत"
अमन ने अगली सुबह कुछ लिखकर भेजा, लिखकर भेजा कि "हिम्मत रखो, सब सही हो जाना है".. फिर शाम को लिखा.. फिर रात में लिखा... अगली सुबह भी लिखा... कोई मैसेज उधर से नहीं आया. आने-जाने वाली हर कॉल अमन को अंजली की ही लगती. फोन के हर नोटिफिकेशन से लगता कि अंजली का मैसेज होगा.. मन में हिम्मत बांधता कि कोई नहीं, शायद फोन छीन लिया होगा.. तो दो दिन में कुछ न कुछ मैसेज आ ही जाएगा.. लेकिन साथ ही साथ शक की लकीरें भी बढ़ने लगीं.
अंजली का कभी कोई रिप्लाई नहीं आया.. कितनी ही बार अमन ने अंजली को HIiii लिखा, कितनी ही बार लिखा "प्लीज एक बार तो मैसेज सीन कर लो". हजारों मैसेज इनबॉक्स में लिखे. मालूम नहीं अंजली फिर कभी ऑनलाइन क्यों नहीं आई, फिर कभी रिप्लाई क्यों नहीं आया...
उस दिन के बाद से इंस्टाग्राम का इनबॉक्स फिर कभी हरा नहीं हुआ. अनगिनत इकतरफा उलाहने, बेतहाशा शिकायतें अब भी पढ़े जाने को उसी इनबॉक्स में रखी हुई हैं. कोई भी उन्हें देखने वाला नहीं है कोई भी उन्हें पढ़ने वाला नहीं था.... "बोलने वाली वो डायरी" हमेशा के लिए कहीं खामोश हो गई.. फिर भी अमन ने लिखना नहीं छोड़ा, अमन इकतरफा ही लिखता, मालूम था कोई रिप्लाई नहीं आना.. अमन आज भी बहुत कुछ लिखता है.. सच में बहुत कुछ...
अंजली! यार...बसंत ओवररेटेड नहीं है, और अक्टूबर तो सच में बेहद बेहद अच्छी मूवी है... प्लीज तुम वापस आ जाओ यार.."
लेकिन उधर से कोई रिप्लाई अब क्यों ही आना था..
रह रहकर अमन को अंजली की दो ही बातें याद आ रही थीं, एक ये कि "तुम मुझे लिखना, मैं तुम्हें लिखूंगी, मरने तक एकदूसरे को अपना सुख-दुख लिखेंगे".
दूसरी ये कि "भैया को लड़के के बारे में पता चल गया है, लड़का यादव है और हम राजपूत".
~ Shyam Meera Singh
ये पक्का तुम्हारी अपनी स्टोरी है.हाँ उनमें से एक हम भी है नाजाने किस नामुराद ने ये जाति बनाई.
ReplyDeleteSundar... bahut sundar likhte hain.. Likhate rahiye.. 🌼🖤
Deleteबहुत ही खुब लिखें हैं
ReplyDeleteये स्टोरी के अमन आप हो
ReplyDeleteग़ज़ब कि प्रेम कहानी, बहुत अच्छी प्रस्तुति सिर्फ़ आपके ज़रिए।
ReplyDeleteVery good sir
ReplyDeleteBahut mast sir ji
Well done sir ji
Excellent
ये ब्लाग कैसे लिखते हैं? सोशल मीडिया पर फेसबुक, ट्विटर, मैसेन्जर पर हूं; एक यूं ही बन गया "पेज" भी है;
ReplyDeleteपर "ब्लाग" और "व्लाग" नहीं जानता.
कोई अंजलि (कहानी वाली) वगैरह फ्रेन्ड लिस्ट में नहीं. खयालों में बहुतेरी.
शानदार मीरा भाई।
ReplyDeleteShyam Bhai Good Luck 👍 For Your Next Story☺️❤️
ReplyDeleteShyam bhai story Lajawab h Good luck bro
ReplyDeleteATI Sundar bhaiya kyuki ladka Yadav hai or hm rajput
ReplyDeleteJaatiwaad hamesha se prem ka virodhi Raha hai.Bahut baar kahaniyo me padha hai filmo me dekha hai par aaj ussi topic ko ekdum alag andaaz me padha.kahani k ant tak jigyasa bani rahi.bahut achha likha. Aap likhte rahiye.
ReplyDeleteYeh kahani Shayd Bhakton ko pasand nahi aye. Mai hu Anne Frank
ReplyDeleteभईया सच में आप ने बहुत खूबसूरती से इस कहानी को उतारा है। दिल नरम हो गया ऐसे ही लिखते रहिए, और जिंदगी के नए पहलू से रूबरू करते रहिए 💙🌼
ReplyDeleteWow bro
ReplyDeleteहर कहानी अपनी ही नजर आने लगी है
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